Abstract
‘ठक्कर बापा’ अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे। लोगों का कहना था कि वे अपने आप में एक संस्था थे। वे जिस युग में थे, वहाँ समाज के दुर्बल अंग की उपेक्षा की जा रही थी; तब बापा ने दलितों और पिछड़े वर्ग को साथ लेकर प्रगति का रास्ता पकड़ा। उनकी अडिग लोक-सेवा ने हर दीन-दुःखी और गरीब को सम्मान दिया और उन्हें सबका बापा बना दिया। राष्ट्रपिता बापू भी उन्हें बापा ही कहा करते थे। अपने जीवन के अंतिम क्षण तक जिस अपूर्व निष्ठा, अनन्य भक्ति व अथक परिश्रम से उन्होंने अपना सेवा-व्रत निभाया, वह निस्संदेह बेजोड़ कहा जा सकता है। बापा विनम्रता और सरलता की मूरत थे; जब काका कालेलकर ने उनसे लेखन के लिए कहा तो वे बोले, ”मेरे जीवन में ऐसा कुछ नहीं है, जो लिखने लायक हो।” उन्हें भाषण देना नहीं आता था और न ही वे साहित्यिक भाषा में लेख लिखते थे, बस उन्हें डायरी लिखने का शौक था। मानवता को सबसे बड़ा धर्म मानकर शोषित-उपेक्षितों के कल्याण और सुख के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करनेवाले सेवाव्रती कर्मयोगी ठक्कर बापा की प्रेरक-पठनीय जीवनी है यह पुस्तक।
ठक्करबापा त्याग, सेवा, बलिदान तथा करुणा के साक्षात् पर्याय थे । उनका सम्पूर्ण जीवन पीड़ित मानवता की सेवा के लिए ही समर्पित था । अपने सेवाभाव के कारण वे उन सन्तों की श्रेणियों में आ गये, जिन्होंने मानव कल्याण के लिए जीवन ग्रहण किया था । 81 वर्ष की अवस्था तक भी कार्य करते हुए 19 जनवरी, 1951 को इस महान् इंसान ने अपना शरीर ईश्वर को समर्पित किया।
Key Words:
आदिवासी महिलाएं, आदिवासियों का अतीत, महिलाओ की समस्याए, ठक्करबापा
Parashar Shalu Mahesh Kumar
Ph.D. Parsing, Gujarat University, Ahmedabad
Email : shalu2794@gmail.com